भारतीय संविधान / संविधान की प्रस्तावना (UPP) 2024

भारत का संविधान देश का सर्वोच्च कानूनी दस्तावेज है, भारतीय संविधान / संविधान की प्रस्तावना (UPP) 2024 जो भारतीय गणतंत्र की संरचना, शासन की विधि, और नागरिकों के अधिकार और कर्तव्यों को परिभाषित करता है। इसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया और यह दुनिया के सबसे लंबे लिखित संविधानों में से एक है। यहाँ भारत के संविधान के प्रमुख बिंदुओं का विवरण दिया गया है:

1. संविधान का निर्माण और महत्व

  • संविधान सभा: भारत के संविधान को तैयार करने के लिए एक संविधान सभा का गठन किया गया था, जिसमें डॉ. भीमराव अंबेडकर प्रमुख संविधान निर्माता थे।
  • संविधान की प्रस्तावना: प्रस्तावना संविधान का उद्देश्य और सिद्धांतों को स्पष्ट करती है, जिसमें लोकतंत्र, समाजवाद, और न्याय के सिद्धांत शामिल हैं।

2. संविधान की संरचना

  • प्रस्तावना: संविधान की प्रस्तावना में देश के उद्देश्यों और प्राथमिकताओं का उल्लेख है।
  • धारा (Articles): संविधान में 448 धाराएँ हैं, जो विभिन्न विषयों पर कानूनों और प्रावधानों को संहिताबद्ध करती हैं।
  • अनुच्छेद (Schedules): संविधान में 12 अनुसूचियाँ हैं जो अलग-अलग विषयों जैसे कि राज्यों की सीमाएं, शक्तियों का वितरण, और संघ और राज्यों के बीच संबंधों को दर्शाती हैं।

3. संविधान की विशेषताएँ

  • संविधान का स्वरूप: यह एक लिखित संविधान है, जो विधायिका, कार्यपालिका, और न्यायपालिका की संरचना और उनके बीच के रिश्तों को स्पष्ट करता है।
  • संविधान की प्राथमिकताएँ: इसमें केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का वितरण, मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों की सुरक्षा, और नीति निर्देशक सिद्धांतों का उल्लेख है।

4. संविधान के प्रमुख हिस्से

  • मौलिक अधिकार: अनुच्छेद 12 से 35 तक, जो नागरिकों के मूलभूत अधिकारों जैसे कि स्वतंत्रता, समानता, और धर्म की स्वतंत्रता को सुरक्षित करते हैं।
  • संविधानिक कर्तव्य: अनुच्छेद 51A, जो नागरिकों के कर्तव्यों की सूची प्रदान करता है।
  • संविधानिक संशोधन: संविधान में बदलाव करने की प्रक्रिया को अनुच्छेद 368 के तहत स्पष्ट किया गया है।

5. संविधान की गतिशीलता और विकास

  • संविधान में संशोधन: संविधान को समय-समय पर संशोधित किया जा सकता है ताकि वह बदलती परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुसार अद्यतित रह सके।
  • व्याख्या और न्यायिक समीक्षा: उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय संविधान की व्याख्या करते हैं और उसके प्रावधानों की समीक्षा करते हैं, जो न्याय सुनिश्चित करने में सहायक होते हैं।

6. संविधान का उद्देश्य

  • संविधान का उद्देश्य: भारत के संविधान का उद्देश्य एक न्यायपूर्ण और लोकतांत्रिक समाज का निर्माण करना है, जिसमें सभी नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता, और न्याय प्राप्त हो।

भारत का संविधान एक जटिल और व्यापक दस्तावेज है जो भारत की राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था को व्यवस्थित और सुचारू रूप से चलाने के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता है।

संविधान की प्रस्तावना

हम, भारत के लोग भारतीय संविधान / संविधान की प्रस्तावना (UPP) 2024, भारत को सपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न (सार्वभौमिक), समाजवादी, पंथ-निरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवंबर, 1949 ई. मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी, संवत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद् द्वारा इस विधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मर्पित करते हैं। भारतीय संविधान / संविधान की प्रस्तावना (UPP)

⇒ यह संविधान का प्रारम्भिक कथन है जो संविधान के कारणों तथा मागदर्शन मूल्यों को बताता है। इसे राजनैतिक कुंजी और राजनैतिक जन्मपत्री बताया गया है भारतीय संविधान / संविधान की प्रस्तावना (UPP) 2024

⇒ प्रस्तावना में संविधान के निर्माताओं के मनोभाव और आदर्श प्रतिबिम्बित होते है। मुख्य न्यायाधीश एम. हिदायतुल्ला और ठाकुर दास भार्गव ने प्रस्तावना को ‘ संविधान की आत्मा’ कहा है। भारतीय संविधान / संविधान की प्रस्तावना (UPP)


⇒ यह गैर न्यायिक है क्योंकि इसके प्रावधानों को न्यायालय में लागू नहीं कराया जा सकता है। यह संविधान के विशिष्ट प्रावधानों को रद्द नहीं कर सकता है। भारतीय संविधान / संविधान की प्रस्तावना (UPP)


⇒ प्रस्तावना से पता चलता है कि ‘ भारत का संविधान अपना अधिकार जनता से प्राप्त करता है’।

संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न-देश का निर्णय अंतिम और बाध्यकारी है। भारत किसी अन्य देश पर निर्भर नहीं है।
समाजवादी-आर्थिक और सामाजिक समानता।

पंथनिरपेक्ष / धर्मनिरपेक्ष-देश में सभी धर्म समान है और उन्हें राज्य का समान समर्थन प्राप्त है। अर्थात राज्य का कोई धर्म नहीं है।

लोकतांत्रिक-सर्वोच्च शक्ति जनता के पास होती है। भारतीय संविधान / संविधान की प्रस्तावना (UPP)
गणतंत्र-राष्ट्रअध्यक्ष प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है। /
} प्रस्तावना में केवल एक बार -42 वें संविधान संशोधन, 1976 के द्वारा-संशोधन किया गया है। इस संशोधन द्वारा तीन वाक्यों को जोड़ा गया है-
पंथनिरपेक्षता /धर्म-निरपेक्षता, समाजवाद एवं अखण्ड़ता।

  • प्रस्तावना के जिन आदर्शों एवं उद्देश्यों की रूपरेखा दी गई, उनकी व्याख्या मूल अधिकारों, राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों एवं मौलिक कर्त्तव्यों के अध्याय में की गई है।
  • केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य (1973) केस द्वारा उच्चतम् न्यायालय ने प्रस्तावना को भारत के संविधान का हिस्सा घोषित किया हैं। इस केस द्वारा मूल ढांचा (basic structure) सिद्धांत का प्रतिपादन किया गया। इसके अनुसार संसद को संविधान के किसी भी भाग में संशोधन का अधिकार है परन्तु मूल ढांचे में संशोधन का अधिकार नहीं होगा। (फैसला 7-6 से सुनाया गया)
  • एस आर बोम्मई बनाम भारत संघ (1994) केस में प्रस्तावना को संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा माना गया भारतीय संविधान / संविधान की प्रस्तावना (UPP)
  • भारत के संविधान की प्रस्तावना एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है जो भारतीय संविधान के उद्देश्यों, सिद्धांतों और प्राथमिकताओं को दर्शाती है। इसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था। यहां प्रस्तावना के महत्वपूर्ण तथ्य दिए गए हैं:
  • सार्वभौम सत्यता: प्रस्तावना को संविधान का ‘आत्मा’ माना जाता है, जो संविधान के उद्देश्यों और प्राथमिकताओं को स्पष्ट करती है।
  • संविधान की उद्देश्यों:
  • भारत को एक संप्रभु समाजवादी लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाने का संकल्प।
  • समाज में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की स्थापना।
  • व्यक्ति की स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे की सुरक्षा।
  • मुख्य तत्व:
  • नागरिकों के अधिकार: प्रस्तावना नागरिकों को स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे का आश्वासन देती है, और इन मूल्यों को संविधान के मूलभूत सिद्धांतों में शामिल करती है।
  • तिथि और समारोह: प्रस्तावना को 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया, जो भारत की गणतंत्रता का दिन है।
  • प्रस्तावना संविधान की उद्देशिका को व्यक्त करती है और उसके उद्देश्यों को स्पष्ट करती है, लेकिन यह स्वयं में कोई कानूनी अधिकार या प्रावधान नहीं है। इसके बावजूद, इसे न्यायालयों और विधायिकाओं द्वारा मार्गदर्शक सिद्धांतों के रूप में प्रयोग किया जाता है।

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